Sunday, February 14, 2016

ये न थी हमारी किस्मत

ये न थी हमारी किस्मत 
- an ode to an unfinished love affair

https://www.youtube.com/watch?v=YXydYgCIfL4

Usually songs are written as one person communicating to another.  Gazals are mostly reflective and are usually not targeted towards a person.  Mirza Ghalib was in a league of his own.  Hence it was said, “ यूं तो दुनिया में बहुत अच्छे हैं सुखनवर (शायर), पर कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयां (style of expression) और” (There may be great poets in this world, but it is said that Ghalib’s style of expression is in a class by itself). 

This particular ghazal is an expression of his innermost feelings - which most people hide from the rest of the world.  In this Ghalib laments on his lack of courage in expressing his love to his beloved.

I have included a few couplets (sher) that are not on the soundtrack. There are many more that I have not included.  This Ghazal in its original form is quite long.
  

ये न थी हमारी किस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता
(ये मेरी किस्मत नहीं थी की मैं अपने यार से मिल पाता
अगर उम्र ज्यादा लम्बी होती, तो वो वक्त भी मैं शायद इंतज़ार में काट देता)
(विसाल-ए-यार – Meeting with my beloved)

तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना
की ख़ुशी से मर न जाते अगर इंतजार होता
(जान लो की यह बात झूठ है की मैं तुमसे मिलने की आस में जीता रहा
क्योंकि अगर सचमुच इंतज़ार होती तो ख़ुशी से मैं मर ना गया होता?)

रगे-संग से टपकता है, वो लहू कि फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरार होता
(जिसे तुम गम समझ रहे हो वो अगर चिंगारियां होतीं
तो मुझ जैसे पत्थर के रगों से टपकता लहू कभी थमता नहीं)
(रग-ए-संग – Arteries of Stone)

तेरी नाज़ुकी से जाना, कि बंदा था एहदे-बोदा 
कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तवार  होता
(तेरी नाज़ुकी से मैंने जाना की मैं शर्तिया कमज़ोर था
अगर मज़बूत होता तो तू मुझे तोड़ नहीं पाती)
(बोदा - Weak   उस्तवार - Strong)


कोई मेरे दिल से पूछे तेरे  तीर-ए-नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
(कोई मेरे दिल से पूछे तेरे इस अधखींचे तीर के बारे में
अगर ये मेरे जिगर के पार हो गया होता तो शायद ये तृष्णा नहीं होती)
(तीर-ए-नीमकश – Half drawn bow, खलिश – pain of desire)
वो न आयें तो सताती है खलिश सी दिल को
वो जो आये तो खलिश और जवान होती है
-    साहिर होशियारपुरी


ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई गमगुज़ार होता
(ये कैसी दोस्ती है की मेरे दोस्त हमेशा मुझे नसीहत (सलाह) देते हैं
मेरा तो दर्द मिटाने वाला और गम में साथ देने वाला होना था
(नासेह – advisor, from नसीहत– advice) , चारासाज़ - healer , गमगुज़ार – one who shares someone’s pain)


कहूं किस से मैं के क्या है  शब्-ए-गम बुरी बाला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
(अब मैं किसी को क्या बताऊँ की दुःख की रात बड़ी कष्टदायक होती है
ये तो बार बार के मरने जैसा है. एक दफा मरना होता तो वो बुरा ना होता)
(शब्-ए-गम - Night of sorrow)

हुए मर के हम जो रुसवा हुए क्यूं के गर्क-ए-दरिया
ना कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता
(मुझ जैसे नाचीज की नाखुश मौत दरिया (समुद्र) में डूब कर हो
जिससे ना तो अर्थी उठे और ना ही कब्र हो)
(रुसवा : unhappy,  गर्क-ए-दरिया : sunk in the sea, जनाज़ा : pall, मज़ार : tomb)

यह मसाइल-ए-तसव्वुफ़ ये तेरा बयां ग़ालिब
तुझे हम वली समझते जो न बादाकार होता
(ऐ ग़ालिब, ये तेरा सूफियाना अंदाज़ (गूढ़ समझ) और तेरी बोली (शेर) इतनी अच्छी  है
कि अगर तू पियक्कड़ न होता तो हम शायद तुझे खुदा का वली (अपना) सोच बैठते!)
(मसाइल-ए-तसव्वुफ़ – Example of mysticism,  वली- God’s favorite people, बादाकार – drunkard;  बादा - booze)